हवा के रंग में दुनिया पे आश्कार हुआ मैं क़ैद-ए-जिस्म से निकला तो बे-कनार हुआ सितारे टूट के तारीकियाँ बिखेर गए ये हादसा भी सफ़र में हज़ार बार हुआ बुलंदियों पे था महव-ए-सफ़र हुआ की तरह लिबास-ख़ाक जो पहना तो ख़ाकसार हुआ लहूलुहान हुआ बहर-ओ-बर का हर मंज़र जो मेरी राह में आया मिरा शिकार हुआ तमाम शहर ने मुजरिम मुझी को गर्दाना तमाम शहर में इक मैं ही संगसार हुआ