हवा ने इस्म कुछ ऐसा पढ़ा था दिया दीवार पर चलने लगा था मैं सेहर-ए-ख़्वाब से उट्ठा तो देखा कोई खिड़की में सूरज रख गया था खड़ा था मुंतज़िर दहलीज़ पर मैं मुझे इक साया मिलने आ रहा था तिरे आने से ये उक़्दा खुला है मैं अपने आप में रक्खा हुआ था सभी लफ़्ज़ों से तस्वीरें बनाईं मिरी पोरों में मंज़र रेंगता था मुझे तेरे इरादों की ख़बर थी सो गहरी नींद में भी जागता था मैं जब मैदान ख़ाली कर के आया मिरा दुश्मन अकेला रह गया था सभी के हाथ में पत्थर थे 'आज़र' हमारे हाथ में इक आईना था