नाव टूटी हुई बिफरा हुआ दरिया देखा अहल-ए-हिम्मत ने मगर फिर भी किनारा देखा गरचे हर चीज़ यहाँ हम ने बुरी ही देखी फिर भी कहना पड़ा जो देखा सो अच्छा देखा दीप से दीप जलाने की हुई रस्म तमाम हम ने इंसान का इंसान से जलना देखा जब से बच्चे ने खिलौने से बहलना छोड़ा दस बरस में ही उसे तीस के सिन का देखा राइज-उल-वक़्त हैं बाज़ार में खोटे सिक्के जो खरे हैं उन्हें होते हुए रुस्वा देखा होश में आएँगे अरबाब-ए-वतन कब 'अंजुम' मैं ने हर-गाम पे कश्मीर का ख़ित्ता देखा