हवा सनके तो ख़ारों को बड़ी तकलीफ़ होती है मिरे ग़म की बहारों को बड़ी तकलीफ़ होती है न छेड़ ऐ हम-नशीं अब ज़ीस्त के मायूस नग़्मों को कि अब बरबत के तारों को बड़ी तकलीफ़ होती है मुझे ऐ कसरत-ए-आलाम बस इतनी शिकायत है कि मेरे ग़म-गुसारों को बड़ी तकलीफ़ होती है कहो मौजों से लहरा कर न यूँ पलटें समुंदर से कि बा-ग़ैरत किनारों को बड़ी तकलीफ़ होती है गले मिलते हैं जब आपस में दो बिछड़े हुए साथी 'अदम' हम बे-सहारों को बड़ी तकलीफ़ होती है