इश्क़ के वास्ते है दिल की आड़ कोई देखे ये तिल की ओट पहाड़ सर-कशी वज्ह-ए-इफ़्तिख़ार नहीं क़द में शमशाद से बड़ा है ताड़ सत्या-नास हो गया दिल का इश्क़ ने ख़ूब की उखाड़-पछाड़ वो ख़ुदा जाने घर में हैं कि नहीं कुछ खुला और कुछ है बंद किवाड़ हसरतें बा'द-ए-मर्ग जाएँ कहाँ दफ़्न कर मुझ को और इन्हें भी गाड़ ना-तवाँ दिल उठाए क्या ग़म-ए-इश्क़ इक तरफ़ राई एक सम्त पहाड़ मेरी तक़दीर का मिरे दिल का उन के हाथों में है बनाव बिगाड़ ख़ाक मेरी भी उस में शामिल है अपने दामन से गर्द-ए-राह न झाड़ माल-ओ-ज़र दे दिया हसीनों को रह गया घर में सिर्फ़ काठ-कबाड़ काश उठ जाए पर्दा-ए-हस्ती मेरे और उस के बीच में है ये आड़ शोला-ए-ग़म से दिल का हाल ये है जैसे पहलू में जल रहा हो भाड़ चार दिन वो बनाव रखते हैं और रखते हैं आठ रोज़ बिगाड़ वो नहीं तो मिरी निगाह में है बाग़ वीरान और शहर उजाड़ रख़्त-ए-हस्ती के हो चुके टुकड़े ऐ जुनूँ अब मिरे कफ़न को फाड़ 'नूह' तूफ़ान-ए-हिज्र-ए-उल्फ़त में कोह-ए-जूदी की ढूँडते हैं आड़