हयात है मिरे दिल की किसी की ज़िंदा याद उसी से है ये दरख़्शाँ उसी से है आबाद वफ़ा न हो तो मोहब्बत का ए'तिबार नहीं जफ़ा न हो तो है ये दिलबरी भी बे-बुनियाद तमाम जिस्म है फ़ासिद तमाम जिस्म ख़राब अगर न जाए किसी आदमी के दिल का फ़साद अब एक क़िस्सा-ए-माज़ी है ज़ुल्म-ए-चंगेज़ी कि हो गए हैं नई क़िस्म के सितम ईजाद मुझे बताओ जगह वो जहाँ मिले मुझ को जिगर का सोज़ नज़र का हिजाब दिल की कुशाद मिरे यक़ीं की है बुनियाद अक़्ल से मोहकम तुम्हारे शक्क-ओ-तरद्दुद की सुस्त है बुनियाद 'उरूज' फ़िक्र-ए-असीरी से ज़ेहन ख़ाली कर बला से जिस्म है महबूस दिल तो है आज़ाद