शम्अ'-रू जल्वा-कुनाँ था मुझे मालूम न था साफ़ पर्दे से अयाँ था मुझे मालूम न था गुल में बुलबुल में हर इक शाख़ में पत्ते में भी जा-ब-जा उस का निशाँ था मुझे मालूम न था ये ग़लत हस्ती-ए-मौहूम को समझे थे मगर और वतन अपना यहाँ था मुझे मालूम न था एक मुद्दत हरम-ओ-दैर में ढूँडा नाहक़ सीम-बर दिल में निहाँ था मुझे मालूम न था सच तो ये है कि सिवा यार के जो कुछ था 'हयात' वहम था शक था गुमाँ था मुझे मालूम न था