शराब पी कर दिया है तुम ने जो हम को जाम-ए-शराब आधा अज़ल से लिक्खा हुआ था शायद कि पाएँ हम तुम सवाब आधा गले लगा कर लिया था बोसा हुए थे राज़ी विसाल पर भी तड़प ने दिल को जगा दिया क्यों अभी तो देखा था ख़्वाब आधा फ़लक से कह दो सहर क़रीं है गई वो ज़ुल्मत हुई शब आख़िर शफ़क़ हिना ले के आप आए कि उड़ गया है ख़िज़ाब आधा यहाँ है ज़ोरों पे ना-तवानी वहाँ नज़ाकत से बात मुश्किल न किस तरह हो सवाल आधा न किस तरह हो जवाब आधा मैं अपनी उल्फ़त का हाल लिक्खूँ बयान-ए-हुस्न-ए-सनम को पढ़ कर इशारा ये है जो सादा रक्खा वरक़ मियान-ए-किताब आधा छुपा लीं हाथों से उस ने आँखें उलट जो दी है नक़ाब रुख़ से रुके न दस्त-ए-हवस की शोख़ी रहे ये जब तक हिजाब आधा तुम्हारी उठती हुई जवानी जो देख पाई शनावरी में वफ़ूर-ए-हैरत से रह गया है उभर के हर इक हबाब आधा 'हयात' ग़फ़्लत नहीं मुनासिब बुतों की ताअ'त को छोड़ दो अब ज़रा तो चौंको चली जवानी गुज़र गया है शबाब आधा