हमारे शे'र का हासिल तअस्सुरात से है हमारा राब्ता काग़ज़ क़लम दवात से है हमारी ज़ीस्त का यूँ हादसों से रिश्ता है कि जैसे ज़ुल्फ़ को निस्बत सियाह रात से है फ़ज़ा चमन की तो शबनम से बा-वज़ू होगी ख़ुदा का ज़िक्र अलस्सुब्ह पात पात से है ख़ुलूस देखिए पत्थर में दस्त-कारी का जो पूजे जाने की रग़बत ख़ुदा की ज़ात से है 'हयात' जिस की अमानत थी उस को लौटा दी अब अपनी ज़ीस्त की वाबस्तगी ममात से है