अभी हयात का माहौल साज़गार कहाँ भला हुज़ूर कहाँ और ये ख़ाकसार कहाँ बस एक रस्म-ए-मुलाक़ात आज बाक़ी है किसी के दिल में किसी के लिए भी प्यार कहाँ ख़याल-ए-यार है वज्ह-ए-सुकून-ए-दिल लेकिन ख़याल-ए-यार कहाँ जल्वा-गाह-ए-यार कहाँ सुना है यूँ तो चमन में बहार आई है गुलों के रुख़ पे मगर रौनक़-ए-बहार कहाँ तुम्हीं ने ख़ैर से मुख़्तार-ए-कुल बनाया है तुम्हीं बताओ कि हम को है इख़्तियार कहाँ निगाह-ए-मस्त से तू ने कभी जो देखा था वो लम्हे ज़ीस्त में मिलते हैं बार बार कहाँ न कू-ए-यार चले हैं न सू-ए-दार 'हयात' न जाने हम भी चले हैं पस-ए-ग़ुबार कहाँ