हयात-ए-इश्क़ को इतना तो नूर-फ़ाम करें मह-ओ-नुजूम अदब से जिसे सलाम करें नज़र मिला के जो करते हैं बात सूरज से वो डूबते हुए तारों से क्या कलाम करें अभी तो वक़्त है तज़ईन-ए-मै-कदा के लिए बजाए रख़ना-गरी मिल के कोई काम करें उठो उठो कि मशाग़िल हैं और भी यारो फ़साना-ए-ग़म-ए-माज़ी यहीं तमाम करें बुलंदियों से पुकारा गया है यूँ 'ग़ौसी' कि अहल-ए-इश्क़ भी हासिल कोई मक़ाम करें