याद करने से पहले भुलाना पड़ा ये ज़हर था मगर आज़माना पड़ा जान कर भी के है तीरगी बद बुरी जान कर भी इसे गुदगुदाना पड़ा राहबर के ज़ेहन को समझने हमें राहज़न के मोहल्ले में जाना पड़ा अब हँसी आ रही है कि किस के लिए हाए किस के लिए मार खाना पड़ा आप तो सर टिका कर के चलते बने और यूँ ही रहा फिर ये शाना पड़ा ज़िंदगी ज़िंदगी ज़िंदगी ज़िंदगी इस बुरी नज़्म को गुनगुनाना पड़ा दोज़ख़ी में रुलाई तो लिक्खी ही थी पर ग़ज़ब ये हुआ मुस्कुराना पड़ा