हयात-ए-राएगाँ है और मैं हूँ ये वक़्त-ए-इम्तिहाँ है और मैं हूँ मिरी तन्हाई का आलम न पूछो ख़याल-ए-दोस्ताँ है और मैं हूँ लबों पर मोहर-ए-ख़ामोशी है लेकिन निगाहों की ज़बाँ है और मैं हूँ मिरी तक़दीर मुझ से बद-गुमाँ है नसीब-ए-दुश्मनाँ है और मैं हूँ जिगर में सोज़ है और दिल में मेरे मिरा दर्द-ए-निहाँ है और मैं हूँ गरेबाँ चाक लट उलझी हुई हैं बड़ा दिलकश समाँ है और मैं हूँ फ़लक वाले मुझे पहचानते हैं ये मेरी कहकशाँ है और मैं हूँ