हज़ार हिकमतें ज़ेहनों में डाल देता है मुसीबतों से वो सब को निकाल देता है चमकती चीज़ों पे हुज़्न-ओ-मलाल देता है ख़ुशी में रंज का पहलू निकाल देता है सब उस की मस्लिहतें हैं बशर को दुनिया में कभी 'उरूज कभी वो ज़वाल देता है सभी को मिलता नहीं मंसब-ए-ख़ुद-आगाही किसी किसी को ख़ुदा ये कमाल देता है उसी के दम से है बाक़ी ये रौनक़-ए-दुनिया जो आंधियों में दियों को उजाल देता है वो अपने बंदों की सब हाजतें समझता है हर एक चीज़ हमें हस्ब-ए-हाल देता है वही ज़माने में करता है सुर्ख़-रू हम को हुनर हमें जो ‘अदीम-उल-मिसाल देता है नज़र जो फेर ले कंगाल हो के रह जाएँ जो आए देने पे कसरत से माल देता है वो इस लिए कि नतीजा ब-ख़ैर हो सब का हमारे ज़ेहनों को फ़िक्र-ए-मआल देता है उसी के फ़ज़्ल से ज़ेहन-ए-रसा मिला हम को वही है जो हमें ऊँचे ख़याल देता है ये नाख़ुदा का नहीं है ख़ुदा का काम 'ज़की' भँवर से जो मिरी कश्ती निकाल देता है