हज़ारों पर्दे में पर्दा नहीं है वो जल्वा हो के भी जल्वा नहीं है वजूद-ए-ग़ैर है अपना नहीं है वही क़तरा है जो दरिया नहीं है अनल-हक़ में बुराई क्या है वाइज़ मोहब्बत में ख़ुदा क्या क्या नहीं है लुटा दे जल्वा ऐ हुस्न-ए-सरापा निगाहों पर कोई पहरा नहीं है सफ़ीरान-ए-मोहब्बत जानते हैं कि मंज़िल है मगर रस्ता नहीं है अजब ये मसअला है मय-कशों का कभी साक़ी कभी सहबा नहीं है गुलों के दम से है पिंदार-ए-हस्ती अभी निकहत ने ये समझा नहीं है मिरी आँखों की दुनिया को तो देखो जहाँ तुम ने अभी देखा नहीं है उसे जिस नाम से चाहो पुकारो मोहब्बत का कोई फ़िरक़ा नहीं है मिरी हर साँस है मंसूब उस से मिरी क़िस्मत में जो लिखा नहीं है ग़म-ए-माज़ी पे मातम करने वालो ग़म-ए-माज़ी ग़म-ए-फ़र्दा नहीं है