जब भी हँसते हुए इंकार किया है उस ने दिल पे इक और नया वार किया है उस ने उस को नफ़रत की निगाहों से न देखे कोई उम्र भर ख़ुद को बहुत प्यार किया है उस ने चूमना उस को सलीक़े से ज़रा बाद-ए-सबा वरक़-ए-गुल को भी तलवार किया है उस ने धूप आवाज़ दे तो छाँव पुकारे उस को कितने आलम को गिरफ़्तार किया है उस ने क्या कभी शम-ए-फ़रोज़ाँ से किसी ने पूछा कैसे इक सुब्ह का दीदार किया है उस ने