हज़रत-ए-दिल का तिरे नाम से उठना गिरना वही पहले की तरह शाम से उठना गिरना फिर चले जाएँगे वो फिर वही फ़ुर्क़त होगी किस लिए वस्ल के हंगाम से उठना गिरना किस को फ़ुर्सत है यहाँ कौन अज़िय्यत देगा वो तो बस वहशत-ए-आलाम से उठना गिरना मैं मोहज़्ज़ब हूँ मिरे साथ अदब से बैठो मैं चला जाऊँ तो आराम से उठना गिरना जब तुम्हें मुझ से ज़रा सी भी मोहब्बत न रही तो ग़लत है न मिरे नाम से उठना गिरना