समाअ'त आप की आहट पे आ कर टूट जाती है By Ghazal << अपने कहते हैं कोई बात तो ... कहाँ ग़ाएब हुआ वो घर परिं... >> समाअ'त आप की आहट पे आ कर टूट जाती है कि ये वो नाव है जो तट पे आ कर टूट जाती है तुझे हाथों से छूने की ज़रूरत ही नहीं पड़ती हवस मेरी तिरी चौखट पे आ कर टूट जाती है नज़र मेरी तिरे माथे की सिलवट पे ही रहती है ख़ुशी मेरी इसी सिलवट पे आ कर टूट जाती है Share on: