हिचकियाँ ले के न रो क़ब्र पे रोने वाले जाग जाएँ न कहीं चैन से सोने वाले ना-ख़ुदाओं पे यक़ीं सोच-समझ कर करना ला के साहिल पे डुबोते हैं डुबोने वाले फ़स्ल-ए-नौ तल्ख़ न होगी तो भला क्या होगी बीज ज़हरीले अगर बोएँगे बोने वाले क़तरा क़तरा मिरे इस ख़ूँ की गवाही देगा लाख दामन से लहू धो मिरा धोने वाले क्या मिलेगा तुझे ज़रदार से नफ़रत के सिवा पैरहन अपना पसीने में भिगोने वाले देख ऐ गर्दिश-ए-दौराँ नहीं टकरा हम से सर पे तन्हाई का हम बोझ हैं ढोने वाले कृष्ण की राधा से कह दो कि ज़माने में 'मयंक' अब वो अंदाज़ कहाँ श्याम सलोने वाले