हिज्र बख़्शा कभी विसाल दिया इश्क़ ने जो दिया कमाल दिया एक ख़त जो सँभालना था मुझे जाने मैं ने कहाँ सँभाल दिया शुक्र उस का करूँ अदा कैसे जिस ने हैरत दी और सवाल दिया मेरी क़िस्मत का फ़ैसला उस ने म'रज़-ए-इल्तवा में डाल दिया ख़ुद किया फ़ैसला ख़िलाफ़ अपने मुश्किलों से उसे निकाल दिया सब को दिल की बताता था 'तैमूर' मैं ने पूछा तो हँस के टाल दिया