हिज्र-ए-जानाँ से रिहाई का क़रीना हो गया सहल मरना हो गया दुश्वार जीना हो गया जो परी-पैकर नज़र आया वो है ज़र का मुतीअ हर दिरम गोया सुलैमाँ का नगीना हो गया क्यों न हो ऐसा उरूज-ए-नश्शा-ए-मय साक़िया ता फ़लक मौज-ए-हवा का क्या ही ज़ीना हो गया वादी-ए-दिल है तजल्ली-गाह-ए-जानाँ रात-दिन इन दिनों सीना हमारा तूर-ए-सीना हो गया साल भर से मुसहफ़-ए-रू-ए-सनम देखा नहीं वो रजब क्या इस रजब का भी महीना हो गया यार की शमशीर-ए-अबरू इस क़दर है आब-दार तेग़ पर ख़जलत से हर जौहर पसीना हो गया कौन है उस माह का जो गरम-ए-नज़्ज़ारा नहीं चश्मा-ए-ख़ुर्शीद भी अब चश्म-ए-बीना हो गया ख़ाक है अब आब ही फ़स्ल-ए-बहारी में शराब शीशा-ए-साअ'त भी मह का आबगीना हो गया गड़ गए गुलबुन ज़मीं में देख कर बौना सा क़द था कफ़-ए-गुल में जो ज़र गोया दफ़ीना हो गया जिस तरह मादूम होते हैं सितारे सुब्ह दम अह्द-ए-पीरी में मिरा ख़ाली ख़ज़ीना हो गया परतव-ए-जानाँ है मेरे कालबुद में जा-ए-रूह आइने की पुश्त गोया अपना सीना हो गया रंग-ए-पाँ से सब्ज़ सोना बन गए कुंदन से गाल मुब्तज़ल तश्बीह है सोने पे मीना हो गया फ़ुर्क़त-ए-साक़ी में ऐसे बन गए हम पारसा महव ख़ातिर से ख़याल-ए-जाम-ओ-मीना हो गया है तसव्वुर में जो महबूब-ए-इलाही रात-दिन का'बा-ए-दिल साफ़ ऐ 'नासिख़' मदीना हो गया