हिज्र जब तय है तो बे-कार न हुज्जत करना जाने वाले को बहुत प्यार से रुख़्सत करना वो जो भेजे थे तिरी मस्त निगाहों ने पयाम एक बार और ज़रा उन की वज़ाहत करना सब के हाथों में ये एजाज़-ए-मसीहाई कहाँ एक ही लम्स का मंसब है करामत करना ये तो ऐसा है कि इस राह में चल पड़िए इश्क़ करना तो बग़ैर इज़्न-ओ-इजाज़त करना दर्द उठता भी रहे आँख से छलके भी नहीं सीखते सीखते आता है शिकायत करना हम को आदाब-ए-मोहब्बत नहीं आते 'सीमा' हम को बस टूट के आता है मोहब्बत करना