साए के हक़ में कुछ नहीं मेरे बयान में जो आप छुपता फिरता है हर साएबान में ये छोटे छोटे शौक़ भी उस को रवा नहीं जिस को बड़ा बनाया गया ख़ानदान में मुझ को है आदमी से तवक़्क़ो ख़ुलूस की सोना तलाश करता हूँ मिट्टी की कान में क़द से नहीं बनाई है पहचान जस्त से ये फ़र्क़ है हमारी तुम्हारी उठान में मिट्टी में मिलने वाले हैं कल उस के चीथड़े उड़ती रहे पतंग भले आसमान में चुप रह सके जो आदमी चुप के मक़ाम पर ये ख़ामुशी हो ज़ुमरा-ए-फ़ौक़-उल-बयान में अब तक हमें ख़बर ही नहीं थी कमाल है निकले हैं हम भी आप के दिल-दादगान में फ़ितरत से कच्चे-पक्के तअल्लुक़ की बात क्या मिट्टी की बास तक नहीं पक्के मकान में