हिज्र के दौर में हालात बदल जाते हैं फूल मर जाते हैं सब पात बदल जाते हैं तू ने देखा है कभी दर्द के सहराओं में धूप बढ़ने लगे तब साथ बदल जाते हैं हम पे वो वक़्त है अब चाहे ख़ुशी आए कि ग़म आँख नम होती है जज़्बात बदल जाते हैं मैं ने लोगों को भी मौसम का मुक़ल्लिद पाया बात होती ही नहीं हाथ बदल जाते हैं तुम अभी आए हो तुम बाँट लो चाहत के वरक़ वक़्त के साथ ख़यालात बदल जाते हैं पहले था भूक का डर अब है रिदा ख़तरे में क्या ख़बर थी हमें ख़तरात बदल जाते हैं ये तो फ़ितरत है बुरा इन को न कहना 'शाकिर' तू ने देखा नहीं दिन रात बदल जाते हैं