हिज्र में नाले किए मैं ने ये नादानी हुई वो परेशाँ क्या हुए मुझ को परेशानी हुई देख कर हुस्न-ए-तसव्वुर सब को हैरानी हुई मात दिल के सामने नक़्क़ाशी है मानी हुई अल्लह अल्लह ख़ुद क़फ़स सरसब्ज़ है शादाब है ख़त्म अश्कों से मिरे रस्म-ए-निगहबानी हुई गरचे आँसू बन गए उल्फ़त में सर-रश्क-ए-गुहर गिरते ही आँखों से इक इक बूँद नीसानी हुई नज़्र-ए-आतिश हो गया परवाना हँसते खेलते अलविदा'अ-ए-ज़िंदगी में कितनी आसानी हुई देख कर गुल-कारियाँ अश्कों की वो हैं मुल्तफ़ित कार-आमद आज मेरी गुल-ब-दामानी हुई वो शब-ए-वा'दा अचानक ऐ 'ज़िया' जब आ गए मेरे ग़म-ख़ाने के हर ज़र्रे में ताबानी हुई