दिल तो दिल शर्त ये है जान भी क़ुर्बां करना कुछ हँसी-खेल नहीं आप का अरमाँ करना मेरे वहशत के वो अंदाज़ कहाँ उन को नसीब फूल सीखें तो अभी चाक-ए-गरेबाँ करना और कुछ उन को नहीं ग़ैर के क़िस्सों से ग़रज़ कुछ न कुछ कह के मिरे दिल को परेशाँ करना बुझने वाला है मरीज़-ए-ग़म-ए-उल्फ़त का चराग़ दुश्मनों से कोई कह दे कि चराग़ाँ करना आसमाँ को है चमकते हुए तारों पे ग़ुरूर तुम ज़रा अपनी जबीं को तो पुर-अफ़्शाँ करना ऐ दिल-ए-ज़ार ये आया निगह-ए-नाज़ का तीर हौसले से भी सिवा ख़ातिर-ए-मेहमाँ करना सुन रहा हूँ कि फिर आने को है गुलशन में बहार तौक़-ए-ज़ंजीर का मेरे लिए सामाँ करना आफ़तें कुंज-ए-क़फ़स की हैं मुक़द्दर में 'ज़िया' कब मयस्सर हो मुझे सैर-ए-गुलिस्ताँ करना