हिजरतों की गोद में पलते रहे थे वफ़ाओं के दिए जलते रहे दाग़-ए-हिजरत से मिली तस्कीन-ए-जाँ हसरतों में लोग कुछ जलते रहे जिन को दा'वा था रहेंगे साथ साथ वक़्त-ए-रुख़्सत हाथ ही मलते रहे मौजज़न गुम-गश्ता मंज़िल की लगन कारवाँ-दर-कारवाँ चलते रहे इक ज़िया-पाशी मुहीत-ए-बज़्म थी दाग़-हा-ए-दिल जहाँ जलते रहे इक़्तिदार-ओ-सर्वत-ओ-सतवत सभी उम्र-ए-रफ़्ता की तरह ढलते रहे देखना 'सादिक़' मआल-ए-दोस्ताँ नार-ए-बुग़्ज़-ओ-कीं में जो जलते रहे