हिलोरे गुनगुनाती बालियों के बनाते दाएरे सरगोशियों के बहुत हैं वार तीखे बिजलियों के कटेंगे पँख चंचल बदलियों के अकेले आ गए जाने कहाँ हम निशाँ मिलते नहीं हैं साथियों के उफ़ुक़ पे शाम ने पटकी हैं बाँहें बिखेरे काँच टुकड़े चूड़ियों के डुबोएँगे नगर को साथ अपने भँवर दिल में बने हैं बासियों के छुपा कर ले गए सूरज की किरनें घनेरे साए गहरी वादियों के कली दिल की न जाने कब खिलेगी भरे फूलों से बाज़ू टहनियों के