हिंदसों के बदलने से तक़दीर न बदलेगी चेहरा जो न बदला तो तस्वीर न बदलेगी जब होनी अटल हो तो फिर हो के ही रहती है जो लौह पे लिक्खी है तहरीर न बदलेगी बदलोगे ख़यालों को तो ख़्वाब भी बदलेंगे जब ख़्वाब न बदले तो ता'बीर न बदलेगी लहजा भी ज़रा अपना थोड़ा सा बदल देखें लफ़्ज़ों के बदलने से तासीर न बदलेगी इस ज़ेहनी ग़ुलामी से चाहोगे तो निकलोगे ग़िलमान न बदले तो ज़ंजीर न बदलेगी तुम आप अगर अपनी इज़्ज़त न करोगे तो नज़रों में ज़माने की तौक़ीर न बदलेगी