हिर्स के बाब में यूँ ख़ुद को तुम्हारा कर के हाथ मलता हूँ मैं अपना ही ख़सारा कर के अब मिरे ज़ेहन में बस लज़्ज़त-ए-दुनिया है रवाँ थक चुका हूँ तिरी उल्फ़त पे गुज़ारा कर के हम अभी सोहबत-ए-दुनिया में हैं मसरूफ़ मगर कोई शब तुम को भी देखेंगे गवारा कर के हम से ख़ामोश तबीअ'त भी हैं दुनिया में कि जो उस को ही चाहते हैं उस से किनारा कर के देर तक कोई न था राह बताने वाला और फिर ले गई इक मौज इशारा कर के