हिर्स-ओ-हवा के हैं सब बंदे कुछ भी ख़ुदा से काम नहीं तुफ़ है ऐसे जीने पर है जिस का नेक अंजाम नहीं मैं ने ही पहले देखा था मैं ही गिरा था ग़श खा कर मैं ही मुल्ज़िम मैं ही मुजरिम आप पे कुछ इल्ज़ाम नहीं हालत-ए-नज़्अ' मत पूछो तुम सकता का सा आलम है अब कोई दम का है मेहमाँ सुब्ह हुई तो शाम नहीं हालत क्या है 'जरीह'-ए-ख़स्ता कुछ मुँह से तो बतलाओ सुन के ग़म में हो सर-गश्ता याद भी उस का नाम नहीं