हिसार-ए-ग़म से जो निकले भी तो किधर आए बहुत मलाल हुआ लौट के जो घर आए दिखाई कुछ न दे लेकिन मिरी निगाहों को तिरे जमाल का मंज़र फ़क़त नज़र आए तुम्हारे दर से गुज़र जाऊँ और ख़बर भी न हो मिरे सफ़र में इक ऐसी भी रहगुज़र आए तमाम उम्र मैं ज़द में रहा हूँ रातों की मिरे ख़ुदा मिरे हिस्से की अब सहर आए