यही इक मश्ग़ला शाम-ओ-सहर है By Ghazal << चाँद को रेशमी बादल से उलझ... हिसार-ए-ग़म से जो निकले भ... >> यही इक मश्ग़ला शाम-ओ-सहर है तसव्वुर है तिरा और चश्म-ए-तर है उसे ज़िक्र-ए-बहार-ओ-बाग़ से क्या क़फ़स को जो समझता हो कि घर है शब-ए-फ़ुर्क़त है अपनी कैसी पिन्हाँ कि जिस की शाम महरूम-ए-सहर है Share on: