हिस्से में आए मेरे सदा टुकड़े काँच के क़िस्मत ने ही किए हैं अता टुकड़े काँच के इक वक़्त था देते थे सज़ा टुकड़े काँच के देने लगे हैं अब तो मज़ा टुकड़े काँच के फ़ितरत में उन की देना चुभन लिख दिया गया मजबूर हैं करें भी तो क्या टुकड़े काँच के आईना देखने की भी हसरत नहीं रही बतलाते हैं मिरी ही ख़ता टुकड़े काँच के अब तेरी बद-दुआ' का असर ख़त्म हो गया करते हैं मेरे हक़ में दुआ टुकड़े काँच के नश्तर चुभा के दुनिया मुझे ज़ख़्म दे रही और दे रहे हैं मुझ को दवा टुकड़े काँच के चाहो 'रजत' से मिलना कभी तुम जो दोस्तो दे देंगे तुम को मेरा पता टुकड़े काँच के