हो चुका वाज़ का असर वाइज़ अब तो रिंदों से दर-गुज़र वाइज़ सुब्ह-दम हम से तू न कर तकरार है हमें पहले दर्द-ए-सर वाइज़ बज़्म-ए-रिंदाँ में हो अगर शामिल फिर तुझे कुछ नहीं ख़तर वाइज़ वाज़ अपना ये भूल जाए तू आवे गर यार-ए-सीम-बर वाइज़ है ये मुर्ग़-ए-सहर से भी फ़ाइक़ सुब्ह उठता है पेशतर वाइज़ मस्जिद-ओ-काबा में तू फिरता है कू-ए-जानाँ से बे-ख़बर वाइज़ शोर-ओ-गुल बंद तो नहीं करता है तू इंसाँ कि कोई ख़र वाइज़ ज़ाहिरी वाज़ से है क्या हासिल अपने बातिन को साफ़ कर वाइज़ बंदा-ए-कू-ए-यार है 'बहराम' तेरी मस्जिद से क्या ख़बर वाइज़