आवारगान-ए-सहरा कू-ए-सनम न ढूँडें जल्वों की वो बहारें ज़ुल्फ़ों के ख़म न ढूँडें ऐ शहर-ए-संग तुझ में ज़ख़्मों की क्या कमी है तेग़-ए-अदा-ए-जल्वा बेहतर है हम न ढूँडें वो आबरू-ए-वहशत लाएँ तो अब कहाँ से वो जन्नत-ए-तमन्ना वो दश्त-ए-ग़म न ढूँडें हासिल न होगा कुछ भी जुज़ दाग़-ओ-दर्द-ए-इबरत अहल-ए-वफ़ा हमारा नक़्श-ए-क़दम न ढूँडें मक़्सद है सिर्फ़ इतना वा'दों की चाँदनी का ख़्वाब-ए-सहर तो देखें ता'बीर हम न ढूँडें हम बे-नियाज़ गुज़रे शोहरत की साज़िशों से नाम-ओ-निशाँ हमारा अहल-ए-क़लम न ढूँडें जाँ दी 'सरोश' हम ने राह-ए-ख़ुलूस-ए-ग़म में फ़र्द-ए-अमल हमारी दैर-ओ-हरम न ढूँडें