हो चुकी बाग़ में बहार अफ़सोस आह ऐ बुलबुलो हज़ार अफ़सोस क़ाफ़िला उम्र का है पा-ब-रिकाब ज़ीस्त का क्या है ए'तिबार अफ़सोस मिरी रातों को देख सोख़तगी न किया एक दिन भी यार अफ़सोस शब से परवाने की लगन में शम्अ सुब्ह तक रोई ज़ार ज़ार अफ़सोस सख़्त बे-ताबी से कटी कल रात आज भी दिल है बे-क़रार अफ़सोस ख़ाल-ओ-ख़त को समझ के दाना-ओ-दाम मुर्ग़-ए-दिल हो गया शिकार अफ़सोस आह दस्त-ए-जुनूँ से ऐ नासेह है गरेबान तार तार अफ़सोस जान होंटों पे आ गई हमदम लेकिन अब तक फिरा न यार अफ़सोस उम्र ग़फ़लत में कट गई है 'नसीर' आह अफ़सोस सद-हज़ार अफ़सोस