कुछ मुदावा न कोई चारा है इश्क़ ने हर किसी को मारा है ग़म सलामत रहे ख़ुदावंदा ज़िंदगी का यही सहारा है मौत आ जाए तो मलूल न हो बहर-ए-ग़म का यही किनारा है बारहा आप के तसव्वुर में वक़्त गुज़रा हुआ गुज़ारा है दिल दिया हम ने गो क़ुसूर इस में कुछ हमारा है कुछ तुम्हारा है इस उचटती निगाह के क़ुर्बां डूबने को मुझे उभारा है क़हर जब तक तिरा क़ुबूल न हो लुत्फ़ भी तेरा नागवारा है हुस्न वालो ख़ता मुआ'फ़ मगर इश्क़ जीता है हुस्न हारा है ऐ अजल सिर्फ़ लम्हा भर रुक जा फिर ग़म-ए-हिज्र ने पुकारा ये घटा ये हवा ये अब्र-ए-सहर कोई समझे तो इक इशारा है