हो दवा मेरे मरज़ की तो मुझे ला कर दे या मिरे हक़ में दुआ ही तू ख़ुदारा कर दे तू भले आ न मगर दिल की तसल्ली के लिए बे-रुख़ी यूँ न दिखा कोई बहाना कर दे इस से पहले कि शिकायत मिरी पहुँचे तुझ तक तू मुझे बज़्म से जाने का इशारा कर दे पत्थरों को है ये डर दौर-ए-मुनासिब में कहीं उन को छू कर न कोई राम अहलिया कर दे है मियाँ वक़्त ये वर्ना जो जमूरा चाहे वो किसी दिन भी मदारी को तमाशा कर दे अपने इस इल्म पे शोहरत की हवस है भारी जो कि ग़ैरत को भी जब चाह ले अंधा कर दे 'राज़' तू सच भी जो कहता है बुरा लगता है ये ज़बाँ तेरी किसी को भी पराया कर दे