हो गए जब एक जा कुछ तिश्नगान-ए-शाम-ए-ग़म सू-ए-मय-ख़ाना चला इक कारवान-ए-शाम-ए-ग़म हिज्र के ग़म से बड़ा दुनिया में कोई ग़म नहीं सामने आएँ कहाँ हैं क़ातिलान-ए-शाम-ए-ग़म जब जला लीं बस्तियाँ गुर्गों ने जितनी बन पड़ी पर्दा-ए-बातिल से निकले हाकिमान-ए-शाम-ए-ग़म आज तो साक़ी मुझे बस जाम-ए-ख़ाली चाहिए आँसुओं से भर चुका है मर्तबान-ए-शाम-ए-ग़म पंछियों ने अपने अपने घोंसलों में ली पनाह सूना-सूना पड़ गया है आसमान-ए-शाम-ए-ग़म तिश्नगी आवारगी ख़ाना-ख़राबी बेकली है बहुत वुस'अत लिए ये ख़ानदान-ए-शाम-ए-ग़म देर तक करते रहे बातें तिरी तस्वीर से और करते 'नज़्र' किस को राज़दान-ए-शाम-ए-ग़म