इस लिए शहर से लोगों ने निकाला मुझ को मिल गया था मिरा इक जानने वाला मुझ को शुक्र अल्लाह का मैं साबित-ओ-सालिम निकला आज़माइश में तो हालात ने डाला मुझ को इन दिनों तेज़ बहुत चर्चे हैं महरूमों के कुछ नज़र आता है इस दाल में काला मुझ को दर्ज कर लेता हूँ हर दिन के बहाने तेरे किस तरह कौन सी तारीख़ में टाला मुझ को हर तरफ़ मुझ से त'अल्लुक़ का ढिँढोरा पीटा तुम ने शोहरत के लिए अपनी उछाला मुझ को हर गुज़रता हुआ दिन 'उम्र घटा देता है इस हक़ीक़त ने कहाँ फ़िक्र में डाला मुझ को इस क़दर साथ अँधेरों ने दिया 'नज़्र' मिरा काटने दौड़ता है दिन का उजाला मुझ को