हो गई बात पुरानी फिर भी याद है मुझ को ज़बानी फिर भी मौजा-ए-ग़म ने तो दम तोड़ दिया रह गया आँख में पानी फिर भी मैं ने सोचा भी नहीं था इस को हो गई शाम सुहानी फिर भी चश्म-ए-नम ने उसे जाते देखा दिल ने ये बात न मानी फिर भी लोग अर्ज़ां हुए जाते हैं यहाँ बढ़ती जाती है गिरानी फिर भी बुरीदा लाए हो दरबार में तुम याद है शो'ला-बयानी फिर भी भूल जोते हैं मुसाफ़िर रस्ता लोग कहते हैं कहानी फिर भी