हो गया आशिक़ किसी का रू-ए-ताबाँ देख कर फँस गया हूँ मैं किसी की ज़ुल्फ़-ए-पेचाँ देख कर क्यों तुझे अल्लाह ने ऐसा बनाया संग-दिल बात भी ज़ालिम न पूछी मुझ को गिर्यां देख कर एक दिन मुझ को नज़र वो ख़्वाब में जो आ गए चश्म रौशन हो गई हुस्न-ए-फ़रावाँ देख कर अबरू-ए-पुर-ख़म की चलती है मिरे सीने पे तेग़ तीर लगते हैं जिगर पर नोक-ए-मिज़्गाँ देख कर है 'अज़ीज़' अब शुक्र वो गुल-रू सुख़न सुन कर तिरा क़द्र कुछ करने लगा तुझ को ग़ज़ल-ख़्वाँ देख कर