ये दिल भी ज़ख़्म है वो गुल भी घाव रखता है तमाम शहर तलब का तनाव रखता है शिकस्ता शाख़ हो तुम बारिशों को दो न सदा नशेब अब के ग़ज़ब का बहाव रखता है क़रीब है तो क़रीब आए दूर है तो रहे ये क्या कि पास भी है और खिचाव रखता है वो मो'तबर भी हमें कर गया सिपुर्द-ए-हवा ये मेहरबान भी मौजों की नाव रखता है दिखा के ख़्वाब मुझे नींद से जगाता है मुझे बिगाड़ के अपना बनाव रखता है 'अता' से बात करो चाँदनी सी शबनम सी ख़ुनुक नज़र है मगर दिल अलाव रखता है