हो जाएँ किसी के जो कभी यार मुनाफ़िक़ समझो कि हुए हैं दर-ओ-दीवार मुनाफ़िक़ बन जाता है कैसे कोई सालार मुनाफ़िक़ ये बात समझने को है दरकार मुनाफ़िक़ मुमकिन था कभी उन को मैं ख़ातिर में न लाता होते जो मुक़ाबिल मिरे दो-चार मुनाफ़िक़ उन को किसी बाज़ार से लाना नहीं पड़ता यारों में ही मिल जाते हैं तय्यार मुनाफ़िक़ नापैद हुआ जाता है इख़्लास यहाँ पर सरदार मुनाफ़िक़ है सर-ए-दार मुनाफ़िक़ जो शख़्स मुनाफ़िक़ है मुनाफ़िक़ ही रहेगा इक बार मुनाफ़िक़ हो या सौ बार मुनाफ़िक़ सच्चाई ज़बाँ काट के चुप-चाप खड़ी है शोहरत की बुलंदी पे हैं अख़बार मुनाफ़िक़ लिक्खा है मुनाफ़िक़ ने मुनाफ़िक़ का फ़साना इस वास्ते रक्खे हैं ये किरदार मुनाफ़िक़ जिस शहर की बुनियाद मुनाफ़िक़ ने हो रक्खी क़ाएम वहाँ हो जाती है सरकार मुनाफ़िक़ मुख़्लिस हैं जो खुल कर मिरी ताईद करेंगे भड़केंगे ये सुन कर मिरे अशआ'र मुनाफ़िक़ 'दानिश' ये हक़ीक़त है भले मानो न मानो इख़्लास का तय करते हैं मेआ'र मुनाफ़िक़