हसीं जबीं पे मिरे होंट थरथराने लगे फिर इस के बाद मिरे होश कब ठिकाने लगे मैं रेत पर भी तराशूँ जो ख़ाल-ओ-ख़द उस के सितारे पर्दा करें चाँद मुँह छुपाने लगे ये आबशार ये बादल ये झील का पानी उसे सँवरने को सब आइना दिखाने लगे कभी जो छेड़ा किसी ने भी तज़्किरा उन का शजर ख़मीदा हुए फूल मुस्कुराने लगे उन्हों ने पूछा न उस की कोई ज़रूरत थी हम अपना हाल दिल-ए-मुज़्तरिब सुनाने लगे मिरे लबों ने फ़क़त नाम ही लिया उस का परिंद उस की गली शहर तक बताने लगे मैं उस के पास जो बैठूँ उलझ पड़े ख़ुशबू चराग़ घूरे मुझे और तिलमिलाने लगे वो दूर आख़िरी कुर्सी पे बैठे बैठे मुझे दिलासा देने लगे हौसला बढ़ाने लगे ये जान कर कि तिरा बुत पड़ा है मंदिर में ख़ुदा-परस्त वहाँ घंटियाँ बजाने लगे मैं उस के शहर से आया हूँ जान कर इतना तमाम लोग मिरे रास्ते सजाने लगे जहाँ बसेरा किया पंछियों ने तेरे लिए हमें वो घोंसले पैरों के आस्ताने लगे ये हुस्न एक ही साअ'त में बन गया था मियाँ ख़ुदा को इश्क़ बनाने में कुछ ज़माने लगे ख़ुमार देखा जो आँखों में नींद का 'दानिश' ज़मीं पे आ के फ़रिश्ते उसे सुलाने लगे