हो जुदा ऐ चारा-गर है मुझ को आज़ार-ए-फ़िराक़ बे-विसाल अच्छा हुआ भी कोई बीमार-ए-फ़िराक़ शोख़ी-ए-पर्दा-नशीं की इश्वा-साज़ी देखना दिल है बदमस्त-ए-विसाल और दीदा बेदार-ए-फ़िराक़ एक नाले में फिरेगा मेहर-ओ-मह को ढूँढता ऐ फ़लक मत छेड़ मुझ को हूँ अज़ा-दार-ए-फ़िराक़ वस्ल थी मेरी सज़ा हिज्र इंतिक़ाम-ए-ग़ैर था कब हुआ ख़ू-करदा-ए-हिज्राँ गिरफ़्तार-ए-फ़िराक़ कोई करता है ख़ता और कोई पाता है सज़ा ग़ैर गुस्ताख़-ए-विसाल और मैं सज़ा-वार-ए-फ़िराक़ दम-ब-दम बिजली गिरे या नहर-ए-ख़ूँ जारी रहे इल्तियाम इस सीने का क्या जो है अफ़गार-ए-फ़िराक़ आँख कब लगती है हीले से जो तुझ से लग गई दास्तान-ए-वस्ल कब सुनता है बेदार-ए-फ़िराक़ दाम में सय्याद के क्यूँ कि न बुलबुल मर रहे दामन-ए-हर-बर्ग-ए-गुल में था निहाँ ख़ार-ए-फ़िराक़ सौ बहार आए मगर जाता है कोई दाग़-ए-दिल लाला-ओ-गुल का नहीं मुश्ताक़ ख़ूँ-बार-ए-फ़िराक़ अब 'क़लक़' ठोकर से तेरी जी चुका मरने के बा'द आश्ना-ए-वस्ल कब हो नाज़-बरदार-ए-फ़िराक़