ज़रा सी रात ढल जाए तो शायद नींद आ जाए ज़रा सा दिल बहल जाए तो शायद नींद आ जाए अभी तो कर्ब है बे-चैनियाँ हैं बे-क़रारी है तबीअ'त कुछ सँभल जाए तो शायद नींद आ जाए हवा के नर्म झोंकों ने जगाया तेरी यादों को हवा का रुख़ बदल जाए तो शायद नींद आ जाए ये तूफ़ाँ आँसुओं का जो उमड आया है पलकों तक किसी सूरत ये टल जाए तो शायद नींद आ जाए ये हँसता मुस्कुराता क़ाफ़िला जो चाँद तारों का 'फ़रह' आगे निकल जाए तो शायद नींद आ जाए