हो न हो मंज़िल सफ़र इक मुख़्तसर मेरा भी है वक़्त की सूली पे लटका एक सर मेरा भी है मैं कि दरिया की तरह बहता नहीं हूँ रात-दिन हूँ तो इक तालाब ही लेकिन सफ़र मेरा भी है एक ही मौसम उदासी का है सदियों से जहाँ दर्द की इन बस्तियों में एक घर मेरा भी है ऐ मिरे मौला मुझे बस अपनी रहमत से नवाज़ आसमाँ इक चाहिए मुझ को कि सर मेरा भी है तू अकेला ही नहीं है फ़िक्र-ए-दुनिया में 'ख़याल' सोच के सागर में डूबा देख सर मेरा भी है