जुरअतों हौसलों उमंगों से ना'रा-ए-हक़ बुलंद कर प्यारे जो तुझे किश्त-ओ-ख़ूँ से मिलती हो उस मसर्रत पे आह भर प्यारे ग़म तरब-ख़ेज़ है कि जाँ-लेवा अब ये क़िस्सा तमाम कर प्यारे हाँ हर इक बात हुस्न रखती है अपने अपने मक़ाम पर प्यारे तू भी इरफ़ान-ए-आगही पा ले तू भी है साहिब-ए-नज़र प्यारे है तो मुश्किल मगर है इम्काँ में मुस्कुराना ब-चश्म-ए-तर प्यारे जानता हूँ जवाब क्या होगा फिर भी अपना सवाल कर प्यारे देखो तो ख़ुद ही टूट जाएगा मत उसे चाह टूट कर प्यारे जो तुझे शाहकार कर देगा है वो इक आँच की कसर प्यारे तुझ को सौगंद आदमियत की लम्हा लम्हा सँवर निखर प्यारे आज तो दिल है वक़्त आने पर नज़्र कर दूँगा अपना सर प्यारे